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होर्मुज जलडमरूमध्य अब भी दुनिया का सबसे महत्वपूर्ण चोकपाइंट क्यों है

चोक पॉइंट क्या हैं

एक चोकेपॉइंट का अर्थ दो बड़े और महत्वपूर्ण जलमार्गों के बीच एक प्राकृतिक संकरे गलियारे से है। समुद्री चोक पॉइंट अपनी रणनीतिक अवस्थिति की वजह से ज्यादा आवागमन वाले जहाजरानी मार्गों की प्राकृतिक रूप से संकरी खाड़ियां हैं।

दुनिया के कुछ मशहूर जहाजरानी मार्गों में समुद्री चोकपाइंट्स या तेल चोक पॉइंट्स, भीड़भाड़ वाले रास्ते हैं। दुनिया भर में ऐसे कई चोक पॉइंट  हैं। उनमें से कुछ जहाजरानी के लिए बेहद मशहूर हैं। इस कारण वहां अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा संघर्षों और सीमा पार आतंकवाद के खतरे भी ज्यादा होते हैं।

समुद्री चोक पॉइंट हमेश अपरिहार्य समुद्री व्यापार मार्गों पर स्थित होते हैं। वैश्विक सुरक्षा समस्याओं के मामले में  इन चोक बिंदुओं से बचने को अक्सर एक व्यावहारिक विकल्प के रूप में सुझाया जाता है। जबकि दुनिया के इन समुद्री चोक बिंदुओं से बचने की कोशिश से जहाजरानी परिचालन को कच्चे तेल की ढुलाई में भारी नुकसान होगा।  तेल जहाजरानी का ज्यादातर परिचालन अभी भी ऐसे ही चोक प्वाइंट से किए जाते हैं।

दुनिया के प्रमुख चोक प्वाइंट

बिना किसी विशेष क्रम के, यहाँ महत्वपूर्ण समुद्री मार्ग (व्यापार) चोक प्वाइंट की एक सूची है।

  1. जिब्राल्टर की जलधारा: अटलांटिक महासागर को भूमध्य सागर से जोड़ती है।
  2. बॉस्पोरस जलडमरूमध्य/मर्मारा जलडमरूमध्य: भूमध्य सागर के साथ काला सागर को जोड़ता है।
  3. स्वेज नहर: भूमध्य सागर को लाल सागर से जोड़ती है।
  4. अफ्रीकी हॉर्न/बाब अल मंडब: लाल सागर को हिंद महासागर से जोड़ता है।
  5. होर्मुज का जलडमरूमध्य: फारस की खाड़ी को अरब सागर/भारत महासागर से जोड़ता है।
  6. मलक्का जलडमरूमध्य: हिंद महासागर को दक्षिण चीन सागर से जोड़ता है।
  7. पनामा नहर: अटलांटिक और प्रशांत महासागरों को जोड़ता है।
  8. टॉरेस स्ट्रेट: प्रशांत और हिंद महासागर को जोड़ता है।
  9. डेनमार्क और स्वीडननॉर्वे के बीच जलडमरूमध्य: बाल्टिक समुद्र को उत्तरी सागर से जोड़ता है।

होर्मुज की जलसन्धि इतना महत्वपूर्ण क्यों है

होर्मुज जलडमरूमध्य एशिया और पूर्वी अफ्रीका बीच पड़ने वाले मध्य पूर्व के इलाके से अधिकांश दुनिया को जोड़ता है। तेल की खोज से बहुत पहले से ही इसे दुनिया की धमनी माना जाता था। खाड़ी से निर्यात होने वाला 90 प्रतिशत तेल जो  दुनिया की आपूर्ति का लगभग 20 प्रतिशत है, होर्मुज से गुजरता है। अपने सबसे संकरे इलाके में यह केवल 21 समुद्री मील चौड़ा है। इस जलडमरूमध्य से नौवहन संकरे दायरे में केंद्रित है, जो इसे खतरनाक बनाता है।

होर्मुज जलडमरूमध्य  तेल व्यापार मार्गों पर स्थित है,  ‍जिससे सालाना लगभग 100,000 जहाज गुजरते हैं। यह तीन क्षेत्रों-मध्य एशिया, दक्षिण एशिया और पश्चिम एशिया को जोड़ता है। होर्मुज से लगे इलाकों में विश्व के दो-तिहाई तेल भंडार हैं। होर्मुज पर नियंत्रण का मतलब होगा ऊर्जा संपन्न अज़रबैजान,  तुर्कमेनिस्तान और अन्य मध्य एशियाई देशों तक पहुंच। होर्मुज पर नियंत्रण अमेरिका को अफगानिस्तान,  मध्य एशिया और रूस तक पहुंच का रास्ता देता है। होर्मुज का उपयोग हिंद महासागर क्षेत्र के साथ-साथ खाड़ी में पाकिस्तानी और चीनी गतिविधियों पर नजर रखने के लिए एक सुविधा के रूप में किया जा सकता है। यह पाकिस्तानी नौसेना की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए भारत के लिए सुविधाजनक स्थान हो सकता है। इन सभी पहलुओं देखकर ही भारत ने ईरान में चाबहार बंदरगाह का निर्माण किया है।

2020 तक खाड़ी देशों से  अमेरिकी तेल आयात बहुत कम हो जाएगा। अमेरिका अपने पड़ोसियों से ही अपनी पूरी खपत का तेल लेगा। इससे फारस की खाड़ी पर अमेरिकी निर्भरता खत्म हो जाएगी। इसके बावजूद  खाड़ी और उसके तेल पर रणनीतिक मूल्य ज्यादा होगा। क्योंकि नाटो के सहयोगियों में सबसे ज्यादा जापान को खाड़ी तेल की जरूरत बनी रहेगी। खाड़ी की तेल आपूर्ति में किसी भी तरह की रुकावट से तेल की कीमतें बढ़ जाएंगी, चाहे अमेरिका कनाडा से या फिर सऊदी अरब से तेल आयात करे।

अमेरिका मध्य पूर्व से कम तेल खपत करता है तो  तर्क यह दिया जाता है कि इस क्षेत्र की सुरक्षा को सुनिश्चित करने की जरूरत भी कम हो जाती है। जबकि यह इतिहास और भू-राजनीति दोनों की गलत समझ है। अमेरिका तेल से ज्यादा सुरक्षा के लिए खाड़ी पर निर्भर करता है।  

सबसे महत्वपूर्ण बात  परमाणु संघर्ष की बढ़ती आशंका है। अमेरिका के परमाणु समझौते से बाहर निकले जाने के बाद ईरान ने तेजी से यूरेनियम का संवर्द्धन शुरू कर दिया है। सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) दोनों अब परमाणु प्रौद्योगिकी हासिल करने में अधिक रुचि रखते हैं। इसके लिए वे बेहतर पहुंच रखते हैं। व्यापार के कारण होर्मुज की सुरक्षा अब विशेष मायने नहीं रखती है।  होर्मुज़ में संघर्ष एक ऐसी आग को चिंगारी दे सकता है जो खाड़ी से आगे भी फैल सकती है। अमेरिका ने बहरीन, कतर और अन्य जगहों पर नौसेना के ठिकानों में भारी निवेश किया है। जहां का रास्ता केवल होर्मुज से होकर जाता है।

इसके कारण अमेरिका अभी भी खाड़ी सुरक्षा के लिए डटा रहेगा। व्यापार की वैश्विक प्रणाली, जिस पर अमेरिकी अमीरी टिकी है वह  केवल होर्मुज से जहाजों के सुरक्षित आवागमन और इलाके में किसी भी परमाणु  हथियार पर रोकथाम के बगैर कायम नहीं कर सकती है। इसलिए, अमेरिका खाड़ी से तेल आवागमन की सुरक्षा में दिलचस्पी बनाए रखेगा।  भले ही इस क्षेत्र से उसका अपना आयात कम या एकदम खत्म ही क्यों  न हो जाए।

अमेरिका यह भी चाहेगा कि प्रमुख तेल आयातक देश खाड़ी और उसके बाहर जलमार्गों की सुरक्षा लागत का एक बड़ा हिस्सा वहन करें। जापान वर्तमान में खाड़ी से सबसे बड़ा आयातक है, लेकिन जल्द ही चीन उसे पीछे छोड़ देगा। भारत का स्थान तीसरा है।  

चीन ग्वादर में CPEC खोलकर खाड़ी में अमेरिकी नौसैनिक प्रभुत्व की जगह लेने की कोशिश में लगा है। ग्वादर खाड़ी जो भविष्य में एक बड़ा निगरानी स्थान बन सकता है,  होर्मुज के मुहाने पर ही है।

अमेरिकी रुचि

इस क्षेत्र के लिए अमेरिका की प्रतिबद्धता की कठोरता कई अमेरिकियों के लिए स्वीकार करना मुश्किल है। यह देखते हुए कि मध्य पूर्व में अमेरिका ने कितने जीवन और कितने धन का बलिदान किया है। अनेक मौकों पर कई अमेरिकी इस क्षेत्र को पूरी तरह छोड़ देना चाहते हैं।

अभी तक किसी भी समूह ने वास्तव में होर्मुज के पूरे जलडमरूमध्य को नियंत्रित नहीं किया है। अमेरिका ने ईरान के साथ न्यूक्लियर डील से हाथ खींच लिए इसलिए ईरान की ओर से खाड़ी की नाकेबंदी की आशंकायें बढ़ गई हैं। किसी भी बड़ी ताकत के बगैर यह अमेरिका के हित में है कि  दुनिया में सबसे अग्रणी नौसेना शक्ति के रूप में वह  होर्मुज से व्यापार के अंतिम गारंटर के रूप में काम करे।

1980 और 1990 के दशक की तुलना में अब होर्मुज की खाड़ी में दांव बहुत अधिक है। जहाजरानी पर टकराव के कारण ईरान और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच पूर्ण युद्ध हो सकता है, और वह परमाणु युद्ध में भी बदल सकता है।

क्षेत्र की सुरक्षा को कायम करने के बजाय अमेरिका ने अल्पकालिक लाभों को  हासिल करने का प्रयास किया है। वह खाड़ी के सहयोगियों को हथियार बेच रहा है और बड़े पैमाने पर खाड़ी देशों के बीच आपसी टकरावों में हस्तक्षेप कर रहा है। तमाम जोखिम के बावजूद सउदी अरब को यमनी गृहयुद्ध में हस्तक्षेप करने से अमेरिका ने अभी तक नहीं रोका है। इस विनाशकारी अवसरवाद का एक कारण अमेरिकी नीति निर्माताओं की गलत धारणा है, जो कार्टर सिद्धांत पर निर्भर है। इस सिद्धांत के तहत अमेरिका ने खाड़ी में अपने हितों की रक्षा के लिए सैन्य बल का उपयोग करने का संकल्प लिया था  जो अब लागू नहीं होता है।

अमेरिका की इस क्षेत्र में सबसे शक्तिशाली सेना है। जबकि वह जलडमरूमध्य के जटिल मानव भूगोल को ध्यान में नहीं रखता है। अमेरिका के पास ईरान को विभाजित करने वाले कई गुटों और अलगाववादी समूहों की बारीक समझ नहीं है। ईरान के साथ अमेरिका का तनावपूर्ण इतिहास रहा है। दोनों देशों का तनाव जल्द ही उस युद्ध में बदल सकता है जो कोई नहीं चाहता है। खाड़ी के अधिकांश देश, कतर से लेकर सऊदी अरब, ईरान तक हालात को नियंत्रण से बाहर जाने देने से बचना चाहते हैं।

प्रतिबंधों के बावजूद,  ईरान जानता है कि युद्ध से उसे कोई लाभ नहीं होगा। यही कारण है कि तेहरान सही था, जब उसने कहा कि खाड़ी  में पश्चिमी तेल टैंकरों पर हाल के हमलों में वह शामिल नहीं था। होर्मुज को सुरक्षा के एक स्थिर गारंटर की जरूरत है, भले ही वह अधूरी ही क्यों न हो।

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