शिव की संकल्पना
महाशिवरात्रि पर
जिनके रोम-रोम में शिव हैं वही विष पिया करते हैं ,
शत्रुता उन्हें क्या जलाएगी , जो श्रृंगार ही अंगार से किया करते हैं
विध्वंस है जिनकी लीला
विष उनका अमृत, उनका तरु नीला
सौंदर्य से अभिभूत है जिनकी काया
दीप्तमान है जिसकी छाया
अव्यवस्था में दिखाए वो सम्पूर्ण प्रतिरूप
उनके ओजस्व, उनकी अठखेलियों से जग अभिभूत
विरोधाभासों का है जो संलयन
मस्तक पर चंद्र तो गले में सर्प होते नियमन
जो गृहस्थ हैं तब भी श्मशानवासी
पृथ्वी जिनका घर है पर हैं ब्रह्मण्डवासी
शक्ति से परिपूर्ण पर उसका पाखंड जिसके लिए क्षुद्र
सौम्य और आशुतोष होते हुए भी जो हैं भयंकर रुद्र
शिव और सत्य के अर्थ को चरितार्थ करते वह निरूप
प्रचंडता का अवतरण ही उनका वास्तविक रूप
अकाल मृत्यु वो मरे, जो काम करे चंडाल का,
काल भी उसका क्या करे, जो भक्त है महाकाल का.
तनाव प्रबंधन भगवान शंकर से सीखें।
1- जटा में गंगा और त्रिनेत्र में अग्नि (जल और आग की दुश्मनी)
2- चन्द्रमा में अमृत और गले मे जहर (अमृत और जहर की दुश्मनी)
3- शरीर मे भभूत और भूत का संग ( भभूत और भूत की दुश्मनी)
4- गले मे सर्प और पुत्र गणेश का वाहन चूहा और पुत्र कार्तिकेय का वाहन मोर ( तीनो की आपस मे दुश्मनी )
5- नन्दी (बैल) और मां भवानी का वाहन सिंह ( दोनों में दुश्मनी)
6- एक तरफ तांडव और दूसरी तरफ गहन समाधि ( विरोधाभास)
7- देवाधिदेव लेकिन स्वर्ग न लेकर हिमालय में तपलीन।
8- भगवान विष्णु इन्हें प्रणाम करते हैं और ये भगवान विष्णु को प्रणाम करते हैं।
इतने विरुद्ध स्वभाव के वाहन और गणों के बाद भी, सबको साथ लेकर चिंता से मुक्त रहते हैं। तनाव रहित रहते हैं।
और हम लोग विपरीत स्वभाव वाले सास-बहू, दामाद-ससुर, बाप-बेटे , माँ-बेटी, भाई-बहन, ननद-भाभी इत्यादि की नोकझोंक में तनावग्रस्त हो जाते हैं। ऑफिस में विपरीत स्वभाव के लोगों के व्यवहार देखकर तनावग्रस्त हो जाते हैं।
भगवान आशुतोष (शंकर )बड़े बड़े राक्षसों से लड़ते हैं और फिर समाधि में ध्यानस्थ हो जाते हैं, हम छोटी छोटी समस्या में उलझे रहते हैं और नींद तक नहीं आती।
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